- अर्चना शुक्ला
- बिज़नेस संवाददाता, बीबीसी न्यूज़
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अदानी ग्रुप की कंपनियों के मामले में भारत के पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) की भूमिका की जांच के लिए गठित जस्टिस सप्रे कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सेबी के काम में पहली नज़र में कोई खामी नहीं पाई है.
दो दिन पहले ही सेबी को अदानी-हिंडनबर्ग मामले की जांच पूरी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से तीन महीने की मोहलत मिली थी.
शुक्रवार को सार्वजनिक की गई क़रीब 178 पेज की जस्टिस सप्रे कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रथम दृष्टया सेबी की ओर से विफलता नहीं हुई है.
सप्रे कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सेबी ने जो कारण बताए हैं और जो आंकड़े दिए हैं उनसे प्रथम दृष्टया कमेटी के लिए इस नतीजे पर पहुंचना मुश्किल है कि क़ीमतों में हेरफेर के मामले में नियामक विफल रहा है.
अदानी ग्रुप-हिंडनबर्ग रिपोर्ट विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड जज जस्टिस एपी सप्रे की अगुवाई में एक कमेटी का गठन किया था.
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अमेरिका की शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने अदानी समूह के खिलाफ धोखाधड़ी, इनसाइडर ट्रेडिंग नियम के उल्लंघन और मनी लॉन्ड्रिंग करने के आरोप लगाए थे.
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सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा अनिश्चित काल का विस्तार नहीं दे सकते?
इन आरोपों के कारण अदानी समूह के बाजार मूल्यांकन में 135 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट आई थी. आरोपों की जांच सेबी कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को 14 अगस्त तक इस मामले की जांच पूरी करने का समय दिया है. इससे पहले सेबी को दो महीने के भीतर इस मामले की जांच करनी थी. यह समय सीमा दो मई को ख़त्म हो चुकी है.
अदालत ने कहा है कि वो उसे 'अनिश्चित काल का विस्तार' नहीं दे सकती. साथ ही कहा कि उसे इस मामले की जांच में 'कुछ तत्परता दिखानी' चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को कॉरपोरेट धोखाधड़ी के आरोपों की अब तक हुई जांच पर एक विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट पेश करने को भी कहा है. हालांकि अदानी समूह ने लगाए गए आरोपों का खंडन किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने छह सदस्यों का एक विशेषज्ञ पैनल बनाया था, जिसका काम किसी भी नियामक विफलताओं की जांच करना और निवेशकों की सुरक्षा के उपाय सुझाना था. इस पैनल ने अदालत को अपने काम की एक शुरुआती रिपोर्ट भी पेश की है.
अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 जुलाई तय की गई है.
अदानी के ख़िलाफ़ हिंडनबर्ग के लगाए आरोपों की जांच को ऐसे वक्त सेवा विस्तार मिला है, जब अदानी समूह की कई कंपनियां योग्य निवेशकों से नए सिरे से धन जुटाने की कोशिश कर रही हैं.
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सेबी और वित्त मंत्रालय के अलग दावों पर विवाद
सेबी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि न्याय सुनिश्चित करने के लिए जांच प्रक्रिया को और समय देने की ज़रूरत है.
नियामक ने अदालत को यह भी बताया कि स्टॉक एक्सचेंजों में अदानी समूह की सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा क़ानून उल्लंघन के बारे में उसने 2016 से कोई सार्वजनिक जांच नहीं की है.
सेबी की इस स्वीकारोक्ति ने एक राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है, क्योंकि यह वित्त मंत्रालय के पहले के बयान के उलट है. वित्त मंत्रालय ने 2021 में अदानी समूह के खिलाफ जांच होने का बयान दिया था.
संसद में एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने 19 जुलाई, 2021 को कहा था, "सेबी अपने नियमों के पालन को लेकर अदानी समूह की कुछ कंपनियों की जांच कर रहा है. इसके अलावा, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई) भी अपने कानूनों के तहत अदानी समूह से संबंधित कुछ संस्थानों की जांच कर रहा है.''
सेबी ने हालांकि अदानी समूह की कंपनियों की जांच की अवधि के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है.
सेबी की ताज़ा जानकारी के बाद विपक्षी दलों ने सरकार को निशाना बनाया है.
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संसद में गुमराह करने के आरोप
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कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता जयराम रमेश ने इसे संसद को गुमराह करने वाली जानकारी क़रार दिया है. वहीं तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इसे 'शपथ का उल्लंघन करने' का मामला बताया है.
हालांकि वित्त मंत्रालय ने कहा है कि वो संसद में दिए गए अपने लिखित जवाब पर अभी भी क़ायम है. उसने कहा है कि उसका जवाब जांचा परखा और सभी संबंधित संस्थाओं से मिली सूचना पर आधारित था.
ताज़ा विवाद के बाद सेबी ने 17 मई को एक नए हलफ़नामे में साफ किया है कि अदानी समूह की 2016 से जांच नहीं की जा रही थी.
सेबी ने कहा है कि ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट यानी जीडीआर के संदिग्ध दुरुपयोग को लेकर हो रही उसकी जांच में अदानी समूह की कोई भी सूचीबद्ध कंपनी शामिल नहीं है.
अदानी समूह के बारे में सेबी की जांच को विश्व स्तर पर बारीकी से ट्रैक किया जा रहा है. इस बात पर गौर किया जा रहा है कि भारत की अदालतें और विनियामक संस्थाएं, धोखाधड़ी और कॉरपोरेट गवर्नेंस के उल्लंघन के आरोपों से कैसे निपटते हैं. ख़ासकर तब जब आरोप किसी बड़े समूह के ख़िलाफ़ लगे हों.
अदानी समूह की कंपनियां कमोडिटी ट्रेडिंग, हवाई अड्डों और बंदरगाहों के संचालन और अक्षय ऊर्जा सहित कई क्षेत्रों में कार्यरत हैं.
मुंबई के एक स्वतंत्र रिसर्च एनालिस्ट हेमेंद्र हजारी का कहना है कि 'अदानी समूह पर लगे आरोप काफ़ी गंभीर हैं. शेयर बाजारों और निवेशकों ने इसके असर पहले ही भांप लिए हैं. ऐसे में कइयों को उम्मीद होगी कि सेबी इस मामले में ज्यादा सक्रिय रहकर काम करेगा.'
इस मामले की जांच की राजनीतिक अहमियत बहुत बड़ी है. विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर संयुक्त रूप से सरकार को घेरा है.
हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अदानी समूह का पक्ष लेने का आरोप लगाते हुए संसद में इस मुद्दे को उठाया. वहीं अब तक के अपने किसी भी भाषण में पीएम मोदी अदानी का जिक्र करने से बचते रहे हैं.
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वापसी के लिए अदानी का संघर्ष जारी
इस साल 24 जनवरी को हिंडनबर्ग की रिपोर्ट जारी होने के बाद से शेयर बाजार में सूचीबद्ध अदानी समूह की सात कंपनियों के बाजार मूल्यांकन में 135 अरब डॉलर से ज़्यादा की गिरावट आ चुकी है.
समूह को अपने सेकेंडरी शेयर की बिक्री भी रोकनी पड़ी, जो बाजार से 2.5 अरब डॉलर जुटाने के लिए शुरू की गई थी. इस राशि से कर्ज चुकाने और अदानी इंटरप्राइजेज की नई परियोजनाओं के लिए धन जुटाने की योजना थी.
इस वाकए के बाद अदानी समूह के मालिक गौतम अदानी की निजी संपत्ति में काफी गिरावट आई और वे एशिया के सबसे अमीर शख़्स नहीं रहे.
अदानी समूह ने अपने बुरे दौर से सुधार करते हुए अपनी स्थिति थोड़ी बेहतर की है. हालांकि अब भी समूह का मूल्यांकन 2023 के शुरुआती दिनों की तुलना में लगभग 100 अरब डॉलर कम है. अदानी समूह के शेयरों में उतार-चढ़ाव फिलहाल जारी है.
कंपनी को बंदरगाहों और ग्रीन एनर्जी कारोबार में निवेश करने की अपनी योजना में कटौती करनी पड़ी. फ्रांस की टोटल गैस और अदानी समूह की महत्वाकांक्षी ग्रीन हाइड्रोजन पार्टनरशिप को फ्रेंच कंपनी ने स्वतंत्र ऑडिट पूरा होने तक रोक दिया.
अपने घबराए हुए निवेशकों को आश्वस्त करने के लिए अदानी समूह ने तब से अब तक कई प्रयास किए हैं.
इन प्रयासों में अपने कर्ज़ को समय से पहले चुकाना भी शामिल है. 5जी जैसे नए क्षेत्र और ग्रीन एनर्जी का कारोबार बहुत हद तक कर्ज पर निर्भर है. अनुमान है कि इसके लिए लिया गया कर्ज़ क़रीब दो लाख करोड़ रुपए तक चला गया है.
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फ़ंड जुटाने की चुनौती
निवेशकों का भरोसा जीतने के प्रयास के तौर पर अदानी समूह ने मार्च 2023 में अपनी समूह की चार कंपनियों की हिस्सेदारी अमेरिका स्थित एसेट मैनेजमेंट कंपनी जीक्यूजी पार्टनर्स को बेची है. समूह ने ऐसा करके 1.87 अरब डॉलर का निवेश जुटाया है.
बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में काम करने वाली किसी भी कंपनी को हमेशा बड़ी पूंजी की ज़रूरत होती है. जनवरी में 2.5 अरब डॉलर जुटाने में नाकाम रहने के बाद अदानी समूह संस्थागत निवेशकों से इतनी ही रकम जुटाने की कोशिश कर रहा है.
समूह की सबसे प्रमुख कंपनी अदानी इंटरप्राइजेज ने इसी माध्यम से लगभग 1.5 अरब डॉलर और अदानी ट्रांसमिशन ने 1.1 अरब डॉलर जुटाने का लक्ष्य रखा है.
इस निवेश का उपयोग कर्ज़ के भुगतान, हवाई अड्डे की नई परियोजनाएं, एक्सप्रेस वे निर्माण और महत्वाकांक्षी ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम के विकास में किया जाएगा.
मुंबई की वेल्थमिल्स सिक्योरिटीज प्रा. के डायरेक्टर क्रांति बथनी कहते हैं कि भले ही अदानी समूह की विकास गति में कुछ नरमी देखी गई है, पर यह निवेशकों को समझाने के लिहाज से बेहतर स्थिति में है.
हालांकि धन जुटाने के लिहाज से अहम फैक्टर शेयर का दाम होगा. हजारी के अनुसार, "अदानी समूह को निवेशकों को भरोसा दिलाने की ज़रूरत है कि वो कर्ज़ पर अपनी निर्भरता और पूंजीगत खर्च दोनों कम कर रहा है."
विश्लेषकों का मानना है कि अदानी समूह की धन जुटाने की कोशिश के सफल रहने से निवेशकों का भरोसा मजबूत तो होगा ही, उसकी विस्तार की कोशिशें भी आगे बढ़ेंगी.
वहीं नियामक की जांच के साथ मीडिया और विपक्षी दलों की छानबीन भी जारी रहेगी.
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